एक दिन दफ़्तर से घर पहुँचा तो माहौल कुछ तना-तना सा लगा। मुन्ने की माँ चाय बड़े बेमन से रख कर चली गई।
मैंने चुप रहने में ही खैर समझी। चाय चुपचाप पी, फिर कपड़े बदले और कम्प्यूटर पर।
थोड़ी देर बाद लगा कि पीछे से कोई घूर रहा है – आज तो शामत है। मैंने चुप रहने में ही भलाई समझी।
इतने में मुन्ने की माँ की तन्नाई हुई अवाज़ सुनाई पड़ी- यह क्या है?
मैंने तिरछी नज़र से देखा: कुछ पिकनिक की फोटो थीं।
मैंने कहा- मुन्ना या मुन्नी से पूछो, कहीं पिकनिक पर गये होंगे, वहीं की फोटो होंगी।
यह ब्लैक एन्ड वाईट हैं और आजकल रंगीन फोटो होती हैं और न तो मुन्ना, मुन्नी दिखाई पड़ रहें हैं न ही उनके कोई दोस्त। फिर यह फोटो तुम्हारे बक्से में क्या कर रहीं थीं?
लगा कि जैसे कोई गुर्रा रहा हो। अब तो ठीक से देखना लाज़मी हो गया।
देखा तो कई पुरानी यादें ताज़ी हो गई। विश्यविद्यालय के समय में हम लोग पिकनिक में गये थे, तभी की फोटो थीं मैं कुछ भावुक होकर उसे पिकनिक के बारे में बताने लगा। इकबाल, जो अब वकील हो गया है, अनूप जो बड़ा सरकारी अफसर हो गया, दिनेश जो कि जाना माना वैज्ञानिक है।
‘मुझे इन सब में कोई दिलचस्पी नहीं है पर यह लड़की कौन जिसकी तुमने इतनी फोटूवें खींच रखी हैं और क्यों इतना सहेज कर रखे हो, आज तक बताया क्यों नहीं?’
मुझे एक पतली सी चीखती हुई आवाज़ सुनाई पड़ी। सारा गुस्सा समझ में आ गया।
यह लड़की मौलिका थी। वह हम लोगों के साथ पढ़ती थी, अच्छा स्वभाव था, बुद्धिमान भी थी। वह सब लड़कों से बात करती थी और अक्सर क्लास में, बेन्च खाली रहने के बावजूद भी, लड़कों के साथ बेन्च में बैठ जाती थी। वह इस बात का ख्याल रखती थी कि वह सबसे बात करे तथा सब के साथ बैठे। हम सब उसे पसन्द करते थे। पर वह हम से किसी को खास पसन्द करती हो ऐसा उसने किसी को पता नहीं लगने दिया।
‘कहां रहती है?’
‘विश्वविद्यालय में साथ पढ़ती थी। मुझे मालूम नहीं कि वह आजकल कहां है, शायद नहीं रही।’
‘तुम्हें कैसे मालूम कि वह नहीं रही?’
‘विश्वविद्यालय के बाद वह मुझसे कभी नहीं मिली पर इकबाल से मुकदमे के सिलसिले में मिली थी। उसी ने बताया था।’
इकबाल मेरा विश्वविद्यालय का दोस्त है और इस समय वकील है, मुन्ने की माँ उसकी बात का विश्वास करती है।
‘इकबाल भाई, मौलिका के बारे में क्या बता रहे थे?’
आवाज से लगा कि उसका गुस्सा कुछ कम हो चला था।
मौलिका पढ़ने में तेज, स्वभाव में अच्छी वा जीवन्त लड़की थी। पढ़ाई के बाद उसकी शादी एक आर्मी ऑफिसर से हो गई। मेरा उससे संपर्क छूट गया था। बाकी सारी कथा यह है जो कि इकबाल ने मुझे बताई है।
शादी के समय मौलिका का पति सीमा पर तैनात था। शादी के बाद कुछ दिन रुक कर वापस चला गया। एक दो बार वह और कुछ दिनों के लिये आया और फिर वापस चला गया। वह उससे कहता था कि उसकी तैनाती ऐसी जगह होने वाली है जहाँ वह अपने परिवार को रख सकता है तब वह उसे अपने साथ ले जायगा।
जब मौलिका का पति रहता था तो वह ससुराल में रहती पर बाकी समय ससुराल और मायके के दोनों जगह रहती। मौलिका की ननद तथा ननदोई भी उसी शहर में रहते थे जहाँ उसका मायका था इसलिये वह जब मायके में आती तो वह उनके घर भी जाती थी।
एक दिन मौलिका बाज़ार गई तो रात तक वापस नहीं आई। उसके पिता परेशान हो गये उसके ससुराल वालों से पूछा, ननदोई से पूछा, सहेलियों से पूछा – पर कोई पता नहीं चला।
पिता ने हार कर पुलिस में रिपोर्ट भी की। वह अगले दिन वह रेवले लाईन के पास लगभग बेहोशी कि हालत में पड़ी मिली। उसके साथ जरूर कुछ गलत कार्य हुआ था। उसका पति भी आया वह कुछ दिन उसके पास रहने के लिये गई और वह मौलिका को मायके छोड़ कर वापस ड्यूटी पर चला गया। मौलिका फिर कभी भी अपने ससुराल वापस नहीं जा पाई।
कुछ महीनों के बाद मौलिका पास उसके पति की तरफ से तलाक का नोटिस आया।
उसमें लिखा था कि,
मौलिका अपने पुरुष मित्र (पर कोई नाम नहीं) के साथ बच्चा गिरवाने गई थी;
उसके पुरुष मित्र ने उसे धोखा दिया तथा उसके ताल्लुकात कई मर्दों से हैं, ऐसी पत्नी के साथ, न तो बाहर किसी पार्टी में (जो कि आर्मी ऑफिसर के जीवन में अकसर होती हैं) जाया जा सकता है, न ही समाज में रहा जा सकता है, इसलिये दोनों के बीच सम्बन्ध विच्छेद कर दिया जाय।
मौलिका का कहना था कि,
वह बाज़ार गई थी वहाँ उसके ननदोई मिल गये;
ननदोई के यह कहने पर कि मौलिका पति का फोन उससे बात करने के लिये आया था तथा फिर आयेगा और वे उससे बात करना चाहते हैं वह उनके साथ घर चली गई क्योंकि उसके घर का फोन कुछ दिन से खराब चल रहा था;
ननदोई के यहाँ चाय पीने के बाद उसकी तबियत खराब हो गई, जब होश आया तो उसने अपने आप को रेलवे लाईन के पास पाया।
उसे कुछ याद नहीं कि उसके साथ क्या हुआ।
वह अपने पति से प्रेम करती है सम्बन्ध विच्छेद न किया जाय।
सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे आज कल पारिवारिक अदालतों में चलते हैं। इनमें फैमिली कांउन्सलर होते हैं जो कि महिलायें ही होती हैं इन फैमिली कांउन्सलर ने मौलिका से बात की और अपनी रिपोर्ट में कहा कि,
मौलिका ज्यादातर समय रोती रही;
सारी बात नहीं बताना चाहती थी; और
लगता है कि झूठ बोल रही है।
निचली आदालत ने फैमिली कांउन्सलर की बात मान कर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया। तब वह इकबाल के पास पंहुची। इकबाल ने हाई कोर्ट में अपील करके उसे जितवा दिया।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि मौलिका किसी पुरुष मित्र के साथ बच्चा गिरवाने गई थी, क्योंकि,
मौलिका के किसी भी पुरुष मित्र का नाम भी किसी ने नहीं बताया;
किसी ने भी मौलिका को पुरुष मित्र के साथ जाते देखने की बात नहीं कही;
इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मौलिका का चरित्र खराब है बलकि उसके अच्छे चरित्र की गवाही है (यह बात तो मौलिका के ससुर ने गवाही में माना था);
मौलिका की शादी हो चुकी थी वह पति के साथ रह चुकी थी जो समय उसने अपने पति के साथ बिताया था उसके कारण वह गर्भवती हो सकती थी। उसको बच्चा गिरवाने का कोई कारण नहीं था।
हाई कोर्ट ने फैमिली कांउन्सलर की रिपोर्ट खारिज करते हुए कहा कि,
जिस महिला के साथ ऐसी बुरी दुर्घटना हुई हो उसके लिये वह सब ब्यान कर पाना मुशकिल है;
ऐसे मौके की याद ही किसी को दहला सकती है;
कोई भी महिला ऐसी बात को बताते समय सुसंगत नहीं रह सकती; और
ऐसी महिला के लिये उस बात के बारे में पूछे जाने पर रोना स्वाभाविक है।
हाई कोर्ट ने मौलिका की अपील मंजूर की तथा उसके पति के सम्बन्ध विच्छेद के मुकदमे को यह कहते हुऐ खारिज किया कि ऐसे मौके पर पति को पत्नी के हालात समझने चाहिएँ तथा उसे सहारा देना चाहिये न कि तिरस्कार करना।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को बहाल रखा।
हाई कोर्ट ने मौलिका की अपील मंजूर करते हुऐ उसे जीवन भत्ते के लिये पैसे भी दिलवाये पर यह नहीं मालूम कि मौलिका ने पैसे लिये कि नहीं क्योंकि इस सबके कुछ महीनों के बाद मौलिका तथा उसका परिवार शहर छोड़ कर मालूम नहीं कहां चला गया। न मुझे न ही इकबाल को कुछ भी उसके बारे में पता है।
‘क्या मौलिका को बिल्कुल कुछ याद नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ?’ मुन्ने की माँ ने पूछा।
‘सब याद था, मुन्ने की मां, सब ! वह शहर छोड़ने के एक दिन पहले इकबाल के पास गई थी और इकबाल को उस रात की सच्चाई बताई। पर यह नहीं बताया था कि वह अगले दिन शहर छोड़ कर जा रही है।’ मैंने कहा।
यह भी अजीब कहानी है उस दिन मौलिका ननदोई के घर में चली गई थी, वहाँ उसे पता चला कि उसकी ननद घर में नहीं थी, वह अपने मायके यानि कि मौलिका के ससुराल में थी, घर में ननदोई के मित्र थे। मौलिका वापस अपने मायके आना चाहती थी पर ननदोई ने उससे सबके लिये चाय बनाने के लिये अनुरोध किया। इसको वह मना नहीं कर पाई क्योंकि घर में चाय बनाने के लिये और कोई नहीं था।
वह जब चाय बनाने गई तब ननदोई तथा उनके मित्रों ने दरवाजा बन्द कर दिया। उसके साथ उन सब ने रात भर गलत कार्य किया। वे लोग अगले दिन उसे बेहोशी की हालत में रेवले लाईन के पास छोड़ आये।
मैंने जब इकबाल से पूछा कि उसने यह बात क्यों नहीं अपने पति या कोर्ट में कही?
इकबाल ने बताया कि उसने मौलिका से यह पूछा था पर मौलिका ने उसे कोई जवाब नहीं दिया।
यह कहानी बताने के बाद मैंने ऐसी ही टिप्पणी की,
‘मौलिका बेवकूफ थी उसे यह बात कोर्ट में कहनी चाहिये थी।’
मुन्ने की माँ ने कोई प्रतिवाद नहीं किया। कुछ देर बाद मैंने उसकी आँखों की तरफ देखा तो उसका सारा गुस्सा काफूर हो चुका था और वह किसी गहरी सोच में डूबी लग रही थी; वह मेरी बात से सहमत नहीं लगती थी। मुझे तो उसके हाव-भाव से लगा कि वह कहना चाह रही है कि मर्द क्या समझें औरत का जीवन !
हा स्वामी ! कहना था क्या क्या…
कह न सकी… कर्मों का दोष !
पर जिसमें सन्तोष तुम्हें हो
मुझे है सन्तोष !
वह क्या इस पर विश्वास करती थी, मालूम नहीं, कह नहीं सकता। पर इस मौलिका के दर्द को क्या कोई समझेगा?
मैं एक बात अवश्य जानता हूं कि मौलिका एक साधारण लड़की नहीं थी वह एकदम सुलझी, समझदार, बुद्धिमान व जीवन्त लड़की थी। उसने पुरानी बातों को भुला कर नया जीवन अवश्य शुरू कर दिया होगा। उसका एक भाई विदेश में था क्या उसी के पास चली गई। कुछ पता चलेगा तो बताऊँगा। आप में से तो बहुत लोग विदेश में रहतें हैं कभी आपको मौलिका मिले तो कहियेगा कि हम सब उसे याद करते हैं; मिलना चाहेंगे और मुन्ने की माँ भी मिलना चाहेगी।
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